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प्रीमेच्योर डिलीवरी में रहता है बच्चे और मां को हाई रिस्क, हर माह में होती हैं 7 से 8 डिलीवरी
आज के बदलते दौर में गर्भ के दौरान महिलाओं में बढ़ते मानसिक तनाव और सही खानपान के चलते प्रीमेच्योर डिलीवरी हो रही हैं। जिसमें बच्चे और मां को दोनों को खतरा रहता है। इसके साथ ही प्रीमेच्योर बेबी के जन्म के बाद विकास करने में भी काफी समय लग जाता है। गॉइनोकोलोजिस्ट डा. कपिला नागपाल ने बताया कि प्रीमेच्योर डिलीवरी यानि गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पूर्व हुए शिशु के जन्म को कहते हैं। मां के स्वास्थ्य गर्भावस्था के पूर्व और उसके दौरान हुई जटिलताओं कई बार गर्भाशय की बनावट आदि कई वजहों से भी प्रीमेच्योर डिलीवरी हो जाती है। वहीं कई बार चिकित्सक भी बच्चे की ग्रोथ न होते देख प्रीमेच्योर डिलीवरी की सलाह देते हैं। हमारे देश में समय से पहले जन्मे शिशुओं की दर बढ़ रही है। साथ ही मैं कम से कम एक माह में 7 से 8 प्रीमेच्योर डिलीवरी के केस आते हैं।
जच्चा-बच्चा की सेहत पर पड़ता है असर
समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों का नार्मल डिलीवरी वाले बच्चों से कमजोर होते हैं। इसके साथ ही उनका विकास भी धीरे-धीरे होता है। प्रीमेच्योर डिलीवरी में बच्चे के साथ-साथ मां के स्वास्थ पर भी असर पड़ता है।
28 से 34 सप्ताह के बीच जन्मे शिशु के लिए
34 सप्ताह से भी कम समय के लिए गर्भ में रहे शिशुओं को गहन देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे में उन्हें एनआइसीयू और नर्सरी में रखने की जरूरत पड़ती है। प्रीमेच्योर नवजातों के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं, जिसकी वजह से उन्हें कई बार ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। वहीं उन्हें पीलिया और कई तरह के इंफेक्शन होने का भी डर रहता है। ऐसे में उन्हें नर्सरी केयर की जरूरत पड़ती है। कई बार प्लांड प्री मेच्योर डिलीवरी करवाने में डाक्टर मां को पहले से ही दवाएं देना शुरू कर देती हैं। जिससे बच्चे का लंग्स अच्छे से विकसित हो जाए।
संक्रमण है सबसे बड़ा कारण
प्रीमेच्योर डिलीवरी का सबसे बड़ा कारण जेनाइटल ट्रेक इंफेक्शन और यूरीनरी इंफेक्शन है। इसलिए गर्भावस्था में इंफेक्शन से बचना बेहद जरूरी है। अगर किसी भी तरह का इंफेक्शन हो तो इसका तुरंत इलाज करवाना चाहिए। साथ ही समय-समय पर जांच कराते रहना चाहिए।
हाईपरटेंशन और प्री एक्लेम्शिया
अगर किसी महिला को पहले से हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है तो ऐसे में उसे अपनी गर्भावस्था के दौरान सचेत रहने की जरूरत है। वहीं कई बार गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को हाइपर टेंशन की वजह से झटके आने लगते हैं। इसे प्री एक्लेम्शिया कहते हैं। ऐसे में जच्चा-बच्चा दोनों की मौत हो सकती है। वहीं कई बार डिलीवरी के बाद भी महिलाओं को झटके आने लगते हैं। एक्लेम्शिया का पूरी तरह से इलाज किया जाना चाहिए।
एनिमिया भी है एक कारण
ज्यादातर देखने में आता है संक्रमण, एक्लेम्शिया के अलावा एनिमिया भी प्रीमेच्योर डिलीवरी का कारण है। इसलिए महिलाओं का हीमोग्लोबिन 11 से 14 एमजी के बीच होना चाहिए। एनिमिया की वजह से उन्हें संक्रमण की संभावना ज्यादा रहती है। जिसकी वजह से समय से पहले डिलीवरी हो जाती है। इसलिए महिलाओं को संतुलित आहार लेना चाहिए। जितना हो सके उतना ही खुश रहने की कोशिश करे।
डिलीवरी के अन्य कारण
गर्भ में जुड़वा या इससे अधिक शिशु पलना, गर्भावस्था के दौरान अत्याधिक रक्तस्त्राव, गर्भाशय की विकृति या असामान्यता, ग्रीवा की कमजोरी, पिछली गर्भावस्थाओं को समाप्त करवाना गर्भपात करवाना, पिछली गर्भावस्थाओं में गर्भपात हो जाना, पानी की थैली जल्दी फट जाना, धूम्रपान व मादक पदार्थों ड्रग्स का सेवन, प्रेग्नेंसी इंड्यूस्ड डायबिटीज, ज्यादा वजन होना आदि।
चेकअप जरूरी : इसके लिए मां का जागरुक होना जरूरी है। इसके लिए मां को अपना एएनसी चेकअप, अल्ट्रासाउंड आदि समय पर करवाना चाहिए। इससे हाई रिस्क प्रेग्नेंसी की पहचान हो जाती है। ऐसे में किसी भी तरह का रिस्क होने पर इसका इलाज किया जा सकता है। हाई रिस्क प्रेग्नेंसी में सबसे ज्यादा प्रीमेच्योर डिलीवरी होने की आशंका रहती है।
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